उपनिवेशवाद एवं जनजातीय समाज | Social Science Class 8 Chapter 4 | Bihar Board Notes

उपनिवेशवाद के आगमन ने भारत के जनजातीय समाज पर गहरा प्रभाव डाला। अंग्रेजों की नीतियों और उनके द्वारा लागू किए गए कानूनों ने जनजातीय जीवन के विभिन्न पहलुओं को प्रभावित किया, जिससे उनके पारंपरिक जीवन में कई चुनौतियाँ उत्पन्न हुईं।

जनजातीय समाज और उनकी आजीविका:

भारत के जनजातीय समुदाय, जैसे भील, गोंड, संथाल और मुंडा, मुख्यतः जंगलों पर निर्भर थे। वे कृषि, शिकार, मछली पकड़ना, पशुपालन और जंगल से उत्पाद एकत्रित करके अपनी आजीविका चलाते थे। जंगल उनके लिए भोजन, दवाएँ, ईंधन और आवास सामग्री का स्रोत थे। उनका जीवन प्रकृति के साथ सामंजस्य में था, और वे अपनी आवश्यकताओं के अनुसार संसाधनों का उपयोग करते थे।

अंग्रेजों की वन नीति और उसका प्रभाव:

अंग्रेजों ने भारत में अपने शासन के दौरान वनों का व्यापक दोहन शुरू किया। उन्होंने वनों को राजस्व के स्रोत के रूप में देखा और उनकी कटाई को प्रोत्साहित किया। तेजी से घटते जंगलों की समस्या से निपटने के लिए अंग्रेज सरकार ने वर्ष 1864 में ‘वन विभाग’ की स्थापना की और 1865 में ‘वन अधिनियम’ लागू किया। इस अधिनियम के तहत वृक्षारोपण की सुरक्षा और पुराने जंगलों के संरक्षण के लिए कई नियम बनाए गए। इसका परिणाम यह हुआ कि आदिवासियों का जंगलों पर परंपरागत अधिकार समाप्त हो गया। उन्हें अब जंगलों से लकड़ी काटने, जानवरों को चराने, फल-फूल एकत्र करने या शिकार करने की अनुमति नहीं थी। सरकार ने आदिवासियों के जंगलों में प्रवेश पर भी प्रतिबंध लगा दिया था। इस प्रकार वन अधिनियम ने आदिवासियों के जंगलों पर उनके अधिकारों को समाप्त कर दिया, जबकि वे अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए जंगलों पर पूरी तरह निर्भर थे।

ईसाई मिशनरियों का आगमन और प्रभाव:

अंग्रेजों के साथ-साथ ईसाई मिशनरियाँ भी जनजातीय क्षेत्रों में सक्रिय हो गईं। उन्होंने आदिवासियों को शिक्षा देने के बहाने उनके क्षेत्रों में प्रवेश किया। हालांकि, मिशनरियों का असली उद्देश्य आदिवासी क्षेत्रों पर नियंत्रण स्थापित करना और उनका धर्मांतरण करना था। उन्होंने आदिवासियों के धर्म और संस्कृति की आलोचना शुरू कर दी और कई आदिवासियों का धर्मांतरण भी करवा लिया। मिशनरियों ने आदिवासियों को यह प्रलोभन दिया कि वे उन्हें सेठों, साहुकारों और महाजनों से बचाएंगे, परंतु वास्तव में ये मिशनरी ही सेठों, साहुकारों, जमींदारों और बिचौलियों के साथ मिलकर आदिवासियों का शोषण करते थे। इन कारणों से आदिवासियों में मिशनरियों के प्रति असंतोष पैदा हुआ और उन्होंने अंग्रेजों तथा गैर-आदिवासियों के विरुद्ध विद्रोह कर दिया।

जनजातीय विद्रोह:

अंग्रेजों की नीतियों और शोषण के खिलाफ जनजातीय समाज ने कई विद्रोह किए। इन विद्रोहों का उद्देश्य केवल अंग्रेजों के खिलाफ नहीं था, बल्कि सेठ, साहूकार और अन्य बिचौलियों के खिलाफ भी था जो उनका आर्थिक और शारीरिक शोषण करते थे। उदाहरण के लिए, बिरसा मुंडा का नेतृत्व में मुंडा विद्रोह एक प्रमुख आंदोलन था, जिसने अंग्रेजों और जमींदारों के अत्याचारों के खिलाफ आवाज उठाई। बिरसा मुंडा का जन्म 15 नवंबर 1874 को छोटानागपुर के उलिहातु गांव के निकट चलकद में हुआ था। उनके पिता का नाम सुगना मुंडा और मां का नाम कदमी था। बिरसा की शिक्षा चाईबासा के एक जर्मन मिशन स्कूल में हुई। शुरू में वह ईसाई धर्म में आए, लेकिन बाद में उससे असंतुष्ट होकर वापस मुंडा बन गए। अंग्रेजों और जमींदारों के प्रति आक्रोश ने उन्हें मुंडा विद्रोह की ओर प्रेरित किया।

निष्कर्ष:

उपनिवेशवाद ने भारत के जनजातीय समाज के पारंपरिक जीवन को गहराई से प्रभावित किया। अंग्रेजों की नीतियों, वन अधिनियमों और मिशनरियों की गतिविधियों ने उनकी सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक संरचना को बदल दिया। इन चुनौतियों के बावजूद, जनजातीय समाज ने अपने अधिकारों और पहचान की रक्षा के लिए संघर्ष किया, जो उनके साहस और संघर्षशीलता का प्रतीक है।

उपनिवेशवाद के आगमन ने भारत के जनजातीय समाज पर गहरा प्रभाव डाला। अंग्रेजों की नीतियों और उनके द्वारा लागू किए गए कानूनों ने जनजातीय जीवन के विभिन्न पहलुओं को प्रभावित किया, जिससे उनके पारंपरिक जीवन में कई चुनौतियाँ उत्पन्न हुईं।

उपनिवेशवाद एवं जनजातीय समाज : प्रश्न-उत्तर

प्रश्न 1: जनजातीय समाज के लोग जंगल का उपयोग किन-किन चीज़ों के लिए करते थे? क्या उनके उद्योग को विकसित करने में भी जंगल की भूमिका थी?

उत्तर: जनजातीय समाज के लोग जंगलों का उपयोग जलावन के लिए लकड़ी, भोजन के लिए कंद-मूल, फल, शहद आदि, जड़ी-बूटियाँ, पशुपालन के लिए चारा, और घर बनाने के लिए सामग्री के रूप में करते थे। उनके उद्योग, जैसे शहद संग्रहण, जड़ी-बूटी संग्रहण, और लकड़ी पर आधारित कारीगरी, जंगलों पर निर्भर थे, जिससे उनकी आजीविका और संस्कृति जुड़ी हुई थी।

प्रश्न 2: बंधुआ मजदूरी से आप क्या समझते हैं?

उत्तर: बंधुआ मजदूरी वह स्थिति है जिसमें व्यक्ति कर्ज चुकाने के लिए बिना वेतन के मालिक की जमीन पर तब तक काम करता है जब तक कि कर्ज की राशि सूद समेत न चुक जाए। ऐसे मजदूरों को बंधुआ मजदूर कहा जाता है, जो आर्थिक शोषण और सामाजिक अन्याय का शिकार होते हैं।

प्रश्न 3: दिकू किसे कहा जाता था, और वे जनजातीय समाज के लिए किस प्रकार हानिकारक थे?

उत्तर: दिकू शब्द का उपयोग जनजातीय समाज में गैर-आदिवासी सेठ, महाजन, व्यापारी और बिचौलियों के लिए किया जाता था, जो अधिक ब्याज पर ऋण देकर और व्यापार के माध्यम से उनका शोषण करते थे। वे जनजातीय संसाधनों का दोहन करते थे, जिससे उनकी आर्थिक स्थिति और सामाजिक संरचना प्रभावित होती थी।

प्रश्न 4: क्या जनजातीय विद्रोह केवल अंग्रेजों के खिलाफ थे, या सेठ, साहूकार एवं महाजन भी इसके लिए जिम्मेदार थे?

उत्तर: जनजातीय विद्रोह केवल अंग्रेजों के खिलाफ नहीं थे; सेठ, साहूकार, महाजन और अन्य बिचौलियों के आर्थिक और शारीरिक शोषण के खिलाफ भी थे। इन समूहों ने जनजातीय समाज का अत्यधिक शोषण किया, जिससे उनमें असंतोष बढ़ा और विद्रोह की चिंगारी भड़की।

प्रश्न 5: बिरसा मुंडा ने स्वयं को भगवान का अवतार क्यों घोषित किया, और इसका जनजातीय समाज पर क्या प्रभाव पड़ा?

उत्तर: सन् 1895 में बिरसा मुंडा को उनके कुलदेवता ‘सिंगबोंगा’ से एक नए धर्म के प्रतिपादन की प्रेरणा मिली, जिसके फलस्वरूप उन्होंने स्वयं को भगवान का अवतार घोषित किया। इससे जनजातीय समाज में एकता और जागरूकता बढ़ी, और उन्होंने अपने अधिकारों और संस्कृति की रक्षा के लिए संगठित होकर संघर्ष किया।

प्रश्न 6: झूम खेती क्या है, और अंग्रेजों की वन नीतियों ने इसे कैसे प्रभावित किया?

उत्तर: झूम खेती एक प्रकार की स्थानांतरित कृषि पद्धति है, जिसमें जंगल के एक हिस्से को काटकर और जलाकर खेती की जाती है, और कुछ वर्षों बाद नई भूमि पर स्थानांतरित हो जाते हैं। अंग्रेजों की वन नीतियों ने झूम खेती पर प्रतिबंध लगाए, जिससे जनजातीय समाज की आजीविका प्रभावित हुई और उन्हें वैकल्पिक रोजगार की तलाश करनी पड़ी।

प्रश्न 7: अंग्रेजों की वन नीतियों ने घुमंतू और चरवाहा समुदायों को किस प्रकार प्रभावित किया?

उत्तर: अंग्रेजों की वन नीतियों ने घुमंतू और चरवाहा समुदायों के जंगलों में प्रवेश और पशुओं के चराई पर प्रतिबंध लगाए, जिससे उनकी पारंपरिक आजीविका बाधित हुई। उन्हें नए रोजगार अपनाने पड़े, जिससे उनकी स्वतंत्र जीवन-यापन की पुरानी व्यवस्था चरमरा गई।

प्रश्न 8: वन-उत्पादों का व्यापार करने वाली कंपनियों को अंग्रेजों की वन नीतियों से क्या लाभ और हानि हुई?

उत्तर: अंग्रेजों की वन नीतियों से वन-उत्पादों का व्यापार करने वाली कंपनियों को सरकारी नियंत्रण में विशेष इलाकों में व्यापार की इजारेदारी मिली, जिससे उनका मुनाफा बढ़ा। हालांकि, सरकारी नियंत्रण के कारण उनकी स्वतंत्रता सीमित हो गई, जिससे व्यापारिक गतिविधियाँ प्रभावित हुईं।

प्रश्न 9: बस्तर और जावा के औपनिवेशिक वन प्रबंधन में क्या समानताएँ थीं?

उत्तर: बस्तर (भारत) और जावा (इंडोनेशिया) दोनों में औपनिवेशिक सरकारों ने वन प्रबंधन लागू किया, जिससे स्थानीय जनजातीय समाज की आजीविका और संस्कृति प्रभावित हुई। दोनों स्थानों पर वन कानूनों ने स्थानीय समुदायों के पारंपरिक अधिकारों को सीमित किया, जिससे विद्रोह और असंतोष की स्थिति उत्पन्न हुई।

प्रश्न 10: अंग्रेजों की वन नीतियों का जनजातीय समाज के सामाजिक और सांस्कृतिक जीवन पर क्या प्रभाव पड़ा?

उत्तर: अंग्रेजों की वन नीतियों ने जनजातीय समाज के सामाजिक और सांस्कृतिक जीवन पर गहरा प्रभाव डाला। जंगलों पर प्रतिबंधों के कारण उनकी पारंपरिक आजीविका प्रभावित हुई, जिससे वे मजदूरी करने या दूसरे पेशे अपनाने के लिए मजबूर हुए। उनकी धार्मिक और सांस्कृतिक मान्यताओं पर भी प्रभाव पड़ा, क्योंकि कई जनजातियाँ अपने देवी-देवताओं की पूजा जंगलों में विशेष स्थानों पर करती थीं। वन कानूनों के कारण ये परंपराएँ कमजोर पड़ गईं। इसके अलावा, मिशनरियों और औपनिवेशिक प्रशासन ने उनकी शिक्षा और सामाजिक संरचना में हस्तक्षेप किया, जिससे उनकी पारंपरिक जीवनशैली में बदलाव आया और कई जनजातियों ने विद्रोह किया।

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