Social Science Class 8 Chapter 3: ग्रामीण जीवन और समाज पर आधारित बिहार बोर्ड कक्षा 8 के सामाजिक विज्ञान के अध्याय 3 में अंग्रेजी शासन के दौरान भारतीय ग्रामीण जीवन में आए परिवर्तनों का विस्तृत अध्ययन किया गया है। यह अध्याय विशेष रूप से भूमि व्यवस्था, कृषि पद्धतियों, नील की खेती, और किसानों के संघर्षों पर केंद्रित है।
अंग्रेजों के आगमन से पूर्व की भूमि व्यवस्था
अंग्रेजों के आगमन से पहले, भारतीय समाज में भूमि का स्वामित्व मुख्यतः किसानों के पास होता था। किसान अपनी भूमि पर खेती करते थे और उपज का एक निश्चित हिस्सा राजा को कर के रूप में देते थे। इस प्रणाली में जमींदारों की भूमिका कर संग्रहकर्ता के रूप में होती थी, लेकिन भूमि का स्वामित्व किसानों के पास ही रहता था।
अंग्रेजी शासन के दौरान भूमि राजस्व व्यवस्थाएँ
अंग्रेजों ने भारत में अपने शासन को सुदृढ़ करने और अधिक राजस्व एकत्रित करने के उद्देश्य से विभिन्न भूमि राजस्व व्यवस्थाएँ लागू कीं:
1. स्थायी बंदोबस्त (Permanent Settlement)
यह व्यवस्था 1793 में लॉर्ड कॉर्नवालिस द्वारा बंगाल, बिहार और ओडिशा में लागू की गई थी। इसमें जमींदारों को भूमि का स्थायी स्वामी मानते हुए उनसे एक निश्चित राशि राजस्व के रूप में तय की गई, जो स्थायी थी। इससे जमींदारों ने किसानों से अधिक कर वसूलना शुरू किया, जिससे किसानों की स्थिति दयनीय हो गई।
2. रैयतवारी व्यवस्था (Ryotwari System)
यह व्यवस्था मद्रास और बॉम्बे प्रेसीडेंसी में लागू की गई थी। इसमें किसानों (रैयत) को सीधे भूमि का स्वामी मानते हुए उनसे सरकार ने सीधे कर वसूला। हालांकि, कर की दरें बहुत अधिक थीं, जिससे किसानों पर भारी बोझ पड़ा।
3. महालवारी व्यवस्था (Mahalwari System)
यह व्यवस्था उत्तर-पश्चिमी प्रांतों, पंजाब और अवध में लागू की गई थी। इसमें गाँव या महाल को कर इकाई मानते हुए, पूरे गाँव से संयुक्त रूप से कर वसूला जाता था। गाँव के मुखिया (महालदार) कर संग्रह के लिए जिम्मेदार होते थे।
नई राजस्व नीतियों का ग्रामीण समाज पर प्रभाव
अंग्रेजों की इन नई राजस्व नीतियों का ग्रामीण समाज पर गहरा प्रभाव पड़ा:
- किसानों की आर्थिक स्थिति: उच्च कर दरों और कठोर वसूली प्रणालियों के कारण किसान कर्ज में डूब गए और कई बार उन्हें अपनी भूमि छोड़नी पड़ी।
- परंपरागत सामाजिक संरचना में बदलाव: जमींदारों की शक्ति में वृद्धि हुई, जिससे ग्रामीण समाज में असमानता बढ़ी।
- कृषि उत्पादन में परिवर्तन: नकदी फसलों की खेती को प्रोत्साहित किया गया, जिससे खाद्य फसलों का उत्पादन कम हुआ और खाद्य संकट उत्पन्न हुआ।
नकदी फसलों की खेती और नील की समस्या
अंग्रेजों ने भारतीय किसानों को नकदी फसलों, विशेषकर नील की खेती के लिए मजबूर किया:
- नील की खेती: नील एक महत्वपूर्ण नकदी फसल थी, जिसका उपयोग कपड़ों को रंगने में होता था। अंग्रेजी कंपनियाँ भारतीय किसानों से कम कीमत पर नील उगवाती थीं और उन्हें अत्यधिक शोषण का सामना करना पड़ता था।
- किसानों की समस्याएँ: नील की खेती से मिट्टी की उर्वरता कम होती थी, जिससे अन्य फसलों की पैदावार प्रभावित होती थी। इसके अलावा, किसानों को नील की खेती के लिए अग्रिम ऋण दिया जाता था, जिसे चुकाना मुश्किल होता था, जिससे वे ऋण जाल में फँस जाते थे।
नील विद्रोह और चंपारण आंदोलन
किसानों ने नील की खेती के खिलाफ विद्रोह किया:
- नील विद्रोह (1859-60): बंगाल में किसानों ने नील की खेती के खिलाफ व्यापक विद्रोह किया, जिससे अंग्रेजों को नील की खेती की प्रणाली में बदलाव करने पर मजबूर होना पड़ा।
- चंपारण आंदोलन (1917): बिहार के चंपारण जिले में नील की खेती के खिलाफ महात्मा गांधी के नेतृत्व में आंदोलन हुआ, जिसने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
निष्कर्ष
अंग्रेजी शासन के दौरान लागू की गई भूमि राजस्व व्यवस्थाओं और नकदी फसलों की खेती ने भारतीय ग्रामीण समाज की संरचना और किसानों की आर्थिक स्थिति पर गहरा प्रभाव डाला। इन नीतियों के प्रतिरोध में हुए आंदोलनों ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को नई दिशा दी और किसानों के अधिकारों के प्रति जागरूकता बढ़ाई।
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ग्रामीण जीवन और समाज – महत्वपूर्ण FAQs
1. अंग्रेजों के आने से पहले भारत की भूमि व्यवस्था कैसी थी?
अंग्रेजों से पहले, भूमि का स्वामित्व किसानों के पास था और वे उपज का एक हिस्सा कर के रूप में राजा को देते थे। जमींदार केवल कर संग्रहकर्ता होते थे, न कि भूमि के स्वामी।
2. स्थायी बंदोबस्त प्रणाली क्या थी और इसका किसानों पर क्या प्रभाव पड़ा?
1793 में लॉर्ड कॉर्नवालिस द्वारा लागू इस प्रणाली में जमींदारों को भूमि का स्थायी स्वामी बना दिया गया। किसानों पर अत्यधिक कर का बोझ बढ़ गया और वे आर्थिक रूप से कमजोर हो गए।
3. रैयतवारी और महालवारी व्यवस्था में क्या अंतर था?
रैयतवारी प्रणाली में किसान सीधे सरकार को कर देते थे, जबकि महालवारी प्रणाली में गाँव के मुखिया या महालदार पूरे गाँव के लिए कर संग्रह करते थे। दोनों ही व्यवस्थाएँ किसानों के लिए कष्टदायक थीं।
4. अंग्रेजों द्वारा नकदी फसलों की खेती को क्यों बढ़ावा दिया गया?
अंग्रेजों को अपने उद्योगों के लिए सस्ता कच्चा माल चाहिए था, इसलिए उन्होंने भारतीय किसानों को नील, जूट और कपास जैसी नकदी फसलों की खेती के लिए मजबूर किया, जिससे खाद्य संकट उत्पन्न हुआ।
5. नील विद्रोह (1859-60) क्या था और इसके क्या परिणाम हुए?
बंगाल के किसानों ने नील की खेती के शोषण के खिलाफ विद्रोह किया। इसका परिणाम यह हुआ कि अंग्रेज सरकार को नील की खेती की जबरदस्ती बंद करनी पड़ी और किसानों को राहत मिली।
6. चंपारण सत्याग्रह का क्या महत्व था?
1917 में महात्मा गांधी ने चंपारण (बिहार) में नील किसानों के शोषण के खिलाफ आंदोलन किया। यह उनकी भारत में पहली बड़ी राजनीतिक जीत थी और इससे किसानों को नील की खेती से मुक्ति मिली।
7. अंग्रेजों की भूमि नीतियों का ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर क्या प्रभाव पड़ा?
अंग्रेजों की नीतियों ने पारंपरिक कृषि व्यवस्था को नष्ट कर दिया, किसानों को कर्जदार बना दिया, खाद्य उत्पादन घटा दिया और ग्रामीण समाज में असमानता बढ़ा दी।
8. ग्रामीण समाज में जाति व्यवस्था की क्या भूमिका थी?
ग्रामीण समाज में जाति व्यवस्था कृषि और सामाजिक संबंधों को निर्धारित करती थी। उच्च जाति के लोग जमींदार और व्यापारी बन गए, जबकि निम्न जाति के लोग मजदूरी और कृषि कार्यों तक सीमित रहे।
9. औद्योगीकरण का ग्रामीण जीवन पर क्या प्रभाव पड़ा?
अंग्रेजी औद्योगीकरण के कारण ग्रामीण दस्तकारों और कारीगरों की आजीविका छिन गई। मशीनों से बने वस्त्रों और उत्पादों की बढ़ती माँग के कारण पारंपरिक ग्रामीण उद्योग समाप्त हो गए।
10. क्या अंग्रेजों की नीतियों का कोई सकारात्मक प्रभाव भी पड़ा?
हालाँकि अंग्रेजों की नीतियाँ शोषणकारी थीं, लेकिन उनके शासन के दौरान रेलवे, डाक व्यवस्था और आधुनिक शिक्षा की शुरुआत हुई, जिससे भारत में संचार और प्रशासनिक ढाँचा मजबूत हुआ।