भारत में उपनिवेशवाद के आगमन के साथ-साथ समाज के विभिन्न वर्गों पर उसका गहरा प्रभाव पड़ा। इन वर्गों में आदिवासी समाज सबसे अधिक प्रभावित हुआ। इस अध्याय में हम यह जानेंगे कि आदिवासियों का जीवन कैसा था, ब्रिटिश शासन ने उनके जीवन को कैसे बदला, और उन्होंने किस प्रकार इसका विरोध किया।
आदिवासी समाज की संरचना
आदिवासी समाज परंपरागत रूप से जंगलों, पहाड़ियों और दूरस्थ क्षेत्रों में निवास करता था। उनका जीवन पूरी तरह से प्रकृति पर आधारित था। वे शिकार करते थे, मछली पकड़ते थे, वनों से लकड़ी, फल, औषधियाँ इकट्ठा करते थे और झूम खेती (स्थान बदलते हुए खेती) करते थे। इन समाजों में कोई औपचारिक शासन व्यवस्था नहीं थी, बल्कि जनजातीय मुखिया या बुज़ुर्गों के द्वारा निर्णय लिए जाते थे।
उपनिवेशवाद और जंगलों पर अधिकार
ब्रिटिश शासन के आगमन के बाद सरकार ने जंगलों पर अपना अधिकार स्थापित करना शुरू किया। वनों को राजस्व का स्रोत मानते हुए अंग्रेजों ने जंगल कानून लागू किए, जिससे आदिवासियों की पारंपरिक गतिविधियाँ प्रतिबंधित हो गईं। शिकार, लकड़ी काटना, झूम खेती जैसे कार्यों को गैरकानूनी घोषित कर दिया गया। इससे आदिवासी समाज की आजीविका प्रभावित हुई और वे मजदूरी के लिए मजबूर हो गए।
मजदूरी और प्रवासन
जंगलों पर नियंत्रण के कारण आदिवासी समुदायों की आर्थिक स्थिति खराब हो गई। उन्हें मजदूरी के लिए चाय बागानों, कोयला खदानों और ईंट-भट्ठों की ओर पलायन करना पड़ा। अनेक आदिवासी ठेकेदारों द्वारा ठगा भी गया। उन्हें बंधुआ मजदूर की तरह काम करना पड़ा और शोषण का सामना करना पड़ा।
आदिवासी आंदोलन और विरोध
ब्रिटिश नीतियों के विरुद्ध आदिवासी समाज ने समय-समय पर विद्रोह किया। उन्होंने न केवल ब्रिटिश शासन का बल्कि स्थानीय महाजनों, ज़मींदारों और साहूकारों के अत्याचार का भी विरोध किया। इन आंदोलनों में संथाल विद्रोह और बीरसा मुंडा का आंदोलन प्रमुख हैं।
संथाल विद्रोह (1855)
संथाल जनजाति ने 1855 में ज़मींदारों, महाजनों और अंग्रेजी अधिकारियों के खिलाफ सशस्त्र विद्रोह किया। यह विद्रोह बिहार (अब झारखंड) के भागलपुर और संथाल परगना क्षेत्र में फैला। विद्रोह का नेतृत्व सिद्धू और कान्हू नामक दो भाइयों ने किया। ब्रिटिश सेना ने इस विद्रोह को बलपूर्वक कुचल दिया, लेकिन इसने सरकार को आदिवासी क्षेत्रों में सुधार करने पर विवश किया।
बीरसा मुंडा और उलगुलान
बीरसा मुंडा एक प्रमुख आदिवासी नेता थे, जिन्होंने 1890 के दशक में ‘उलगुलान’ (महाविद्रोह) का नेतृत्व किया। उन्होंने आदिवासी समुदाय को संगठित किया और धार्मिक, सामाजिक एवं राजनीतिक सुधारों का आह्वान किया। बीरसा मुंडा ने आदिवासियों को ‘धरती आबा’ के रूप में एक नई पहचान दी। उनका उद्देश्य आदिवासी संस्कृति की रक्षा करना और अंग्रेजी सत्ता को समाप्त करना था। वर्ष 1900 में बीरसा की जेल में मृत्यु हो गई, लेकिन उनके आंदोलन ने आदिवासी चेतना को नई दिशा दी।
निष्कर्ष
ब्रिटिश उपनिवेशवाद ने आदिवासी समाज की पारंपरिक जीवन पद्धति को गहरे रूप से प्रभावित किया। जंगल कानून, भूमि से विस्थापन, और शोषणकारी आर्थिक नीतियों ने आदिवासियों को संघर्ष के लिए बाध्य किया। हालांकि उनके विद्रोह अस्थायी रूप से दबा दिए गए, परंतु उन्होंने ब्रिटिश शासन को यह स्पष्ट संदेश दिया कि आदिवासी समाज अपने अधिकारों और संस्कृति के लिए लड़ने को तैयार है।
अति लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर
- संथाल विद्रोह कब हुआ था?
उत्तर: 1855 - संथाल विद्रोह का नेतृत्व किसने किया?
उत्तर: सिद्धू और कान्हू - बीरसा मुंडा का जन्म कहाँ हुआ था?
उत्तर: उलिहातु - बीरसा मुंडा किस जनजाति से संबंधित थे?
उत्तर: मुंडा - बीरसा मुंडा को क्या कहा जाता था?
उत्तर: धरती आबा - उलगुलान का अर्थ क्या है?
उत्तर: महाविद्रोह - झूम खेती किस समाज द्वारा की जाती थी?
उत्तर: आदिवासी - आदिवासियों को जबरन मजदूरी के लिए कहाँ भेजा गया?
उत्तर: चाय बागान - संथाल विद्रोह किस राज्य में हुआ था?
उत्तर: बिहार - आदिवासी समाज किस पर निर्भर था?
उत्तर: जंगल - जंगलों पर किसने नियंत्रण किया?
उत्तर: ब्रिटिश सरकार - जंगल कानून किसने लागू किए?
उत्तर: अंग्रेजों ने - आदिवासी समाज किस प्रकार का शासन मानता था?
उत्तर: पारंपरिक - बीरसा मुंडा की मृत्यु कहाँ हुई थी?
उत्तर: जेल - संथाल विद्रोह के समय ब्रिटिश सेना ने क्या किया?
उत्तर: दमन
दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1: आदिवासी समाज की विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर: आदिवासी समाज पारंपरिक रूप से जंगलों और पहाड़ी क्षेत्रों में निवास करता था। उनका जीवन प्रकृति पर आधारित होता था। वे शिकार करते थे, मछली पकड़ते थे, लकड़ी और जड़ी-बूटियाँ इकट्ठा करते थे। उनकी आजीविका झूम खेती, पशुपालन और वनों पर निर्भर थी। वे आत्मनिर्भर जीवन जीते थे और समाज में परंपरागत मुखिया या बुजुर्गों का निर्णय मान्य होता था। उनका जीवन सरल और सामूहिक सहयोग पर आधारित था।
प्रश्न 2: अंग्रेजों की नीतियों ने आदिवासियों के जीवन को कैसे प्रभावित किया?
उत्तर: अंग्रेजों ने जंगलों पर अपना नियंत्रण स्थापित किया और जंगल कानून लागू किए। इन कानूनों के तहत आदिवासियों को वनों में शिकार, लकड़ी काटने, और झूम खेती से वंचित कर दिया गया। उनकी परंपरागत आजीविका समाप्त हो गई और वे मजदूरी के लिए चाय बागानों और खदानों में पलायन करने लगे। इस कारण आदिवासी समाज का सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक ताना-बाना टूट गया।
प्रश्न 3: संथाल विद्रोह का कारण और महत्व स्पष्ट कीजिए।
उत्तर: संथाल विद्रोह 1855 में हुआ था। इसका मुख्य कारण अंग्रेजों, महाजनों और ज़मींदारों द्वारा आदिवासियों का शोषण था। संथालों की जमीनें छीन ली गईं और उन पर कर लगाया गया। यह विद्रोह सिद्धू और कान्हू के नेतृत्व में हुआ। संथालों ने सशस्त्र संघर्ष किया लेकिन अंग्रेजों ने विद्रोह को बलपूर्वक दबा दिया। यह विद्रोह आदिवासियों के आत्म-सम्मान और अधिकारों की रक्षा के लिए महत्वपूर्ण उदाहरण है।
प्रश्न 4: झूम खेती क्या होती है? यह आदिवासी समाज में क्यों महत्वपूर्ण थी?
उत्तर: झूम खेती वह प्रणाली है जिसमें एक स्थान पर कुछ वर्षों तक खेती करने के बाद उस स्थान को छोड़ दिया जाता है और नए स्थान पर खेती की जाती है। यह खेती आदिवासी समाज के लिए महत्वपूर्ण थी क्योंकि उनकी आजीविका इसी पर निर्भर थी। यह प्राकृतिक संसाधनों के साथ सामंजस्यपूर्ण जीवन को दर्शाती है। लेकिन अंग्रेजों ने इसे अस्थायी और अव्यवस्थित मानते हुए प्रतिबंधित कर दिया।
प्रश्न 5: बीरसा मुंडा कौन थे? उनके आंदोलन के प्रमुख उद्देश्य क्या थे?
उत्तर: बीरसा मुंडा झारखंड के एक प्रमुख आदिवासी नेता थे। उन्होंने आदिवासी समाज में धार्मिक और सामाजिक जागरूकता लाई। उनके आंदोलन के उद्देश्य थे:
- आदिवासी संस्कृति की रक्षा
- ब्रिटिश शासन का विरोध
- ज़मींदारों और महाजनों द्वारा शोषण का अंत
- आदिवासियों को ईसाई धर्म में परिवर्तित करने से रोकना
उनका आंदोलन ‘उलगुलान’ के नाम से प्रसिद्ध हुआ।
प्रश्न 6: बीरसा मुंडा के विचारों और कार्यों का आदिवासी समाज पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर: बीरसा मुंडा ने आदिवासियों को संगठित किया और उन्हें अपने अधिकारों के प्रति जागरूक किया। उन्होंने उन्हें अपनी संस्कृति, भाषा और परंपराओं की रक्षा करने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने आदिवासियों को अंग्रेजों और ज़मींदारों के खिलाफ खड़ा किया। उनके विचारों ने आदिवासी समाज में एकता, आत्मबल और चेतना का संचार किया, जिससे आदिवासी आंदोलनों को एक नई दिशा मिली।
प्रश्न 7: आदिवासी समाज की समस्याएँ और संघर्ष पर टिप्पणी कीजिए।
उत्तर: आदिवासी समाज को अंग्रेजों द्वारा लागू किए गए कानूनों, ज़मींदारी व्यवस्था, महाजनी प्रथा और वन अधिकारों की समाप्ति से गंभीर समस्याओं का सामना करना पड़ा। उनकी पारंपरिक आजीविका छिन गई और वे आर्थिक रूप से शोषित हुए। इसके विरोध में उन्होंने संथाल विद्रोह, बीरसा आंदोलन जैसे संघर्ष किए। ये संघर्ष उनके आत्मसम्मान और सांस्कृतिक पहचान को बनाए रखने के लिए थे।
प्रश्न 8: आदिवासी समाज और ब्रिटिश शासन के बीच टकराव के कारणों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर: टकराव के मुख्य कारण थे:
- ब्रिटिश शासन द्वारा जंगलों पर नियंत्रण
- परंपरागत कृषि पद्धतियों पर प्रतिबंध
- ज़मीनों की जब्ती
- करों का बोझ
- महाजनों और ज़मींदारों द्वारा अत्यधिक शोषण
इन कारणों ने आदिवासी समाज को विरोध करने के लिए मजबूर किया और परिणामस्वरूप कई विद्रोह हुए।
प्रश्न 9: बीरसा मुंडा के ‘उलगुलान’ आंदोलन की विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर: ‘उलगुलान’ का अर्थ है महाविद्रोह। यह आंदोलन बीरसा मुंडा द्वारा चलाया गया था। इसकी विशेषताएँ थीं:
- यह धार्मिक, सामाजिक और राजनीतिक आंदोलन था।
- इसमें आदिवासियों को संगठित किया गया।
- इसका उद्देश्य ब्रिटिश शासन और महाजनी व्यवस्था को समाप्त करना था।
- यह आदिवासी पहचान की पुनःस्थापना की कोशिश थी।
- आंदोलन 1900 में बीरसा की मृत्यु के बाद समाप्त हुआ लेकिन इसका प्रभाव लंबे समय तक रहा।
यदि आपने पिछला अध्याय नहीं पढ़ा है, तो आप यहाँ देख सकते हैं –
History Class 9 Chapter 5: जर्मनी में नाजीवाद का उदय
इसी तरह, आप पिछले विश्व इतिहास पर आधारित अध्याय भी पढ़ सकते हैं –
History Class 9 Chapter 4: विश्वयुध्दों का इतिहास
और अगले अध्याय में आप जानेंगे कि विश्व में शांति स्थापना के लिए क्या प्रयास किए गए –
Class 9 History Chapter 7: शांति के प्रयास