Kalikinkar Datt: बिहार बोर्ड कक्षा 8 के इतिहास के अध्याय 14 “हमारे इतिहासकार कलिकिंकर दत्त (1905-1982)” में प्रसिद्ध इतिहासकार डॉ. कलिकिंकर दत्त के जीवन, शिक्षा, और ऐतिहासिक योगदान को विस्तार से प्रस्तुत किया गया है। यह अध्याय विद्यार्थियों को एक सच्चे इतिहासकार के गुणों, उनकी लेखन शैली और भारतीय इतिहास लेखन में उनके योगदान को समझने का अवसर प्रदान करता है। यह पाठ न केवल ज्ञानवर्धक है, बल्कि प्रेरणादायक भी है।
1. Kalikinkar Datt परिचय और योगदान
- डॉ. कलिकिंकर दत्त आधुनिक भारत के एक प्रतिष्ठित इतिहासकार थे। उन्होंने बिहार और बंगाल के आधुनिक इतिहास (पिछले 3 शताब्दियों) का गहन अध्ययन किया, जिससे बिहार का इतिहास स्पष्ट रूप से सामने आया।
- उनका शोधबद्ध लेखन बिहार राज्य में आधुनिक इतिहास लेखन के क्षेत्र में अत्यधिक प्रभावशाली रहा।
2. जन्म, शिक्षा एवं प्रारंभिक जीवन
- दत्त का जन्म 1905 में झिकरहाटी गाँव, पाकुर ज़िला में हुआ था।
- उन्होंने 1927 में कलकत्ता विश्वविद्यालय से MA की डिग्री हासिल की।
- 1930 में वे पटना कॉलेज इतिहास विभाग में व्याख्याता नियुक्त हुए।
- ‘अलीवर्दी एंड हिज़ टाइम्स’ विषय पर उनके शोध कार्य पर उन्हें PhD की उपाधि प्राप्त हुई।
3. शैक्षणिक और प्रशासनिक पद
- 1958 में वे पटना कॉलेज के प्राचार्य बने।
- 14 मार्च 1965 को पटना विश्वविद्यालय के उपकुलपति नियुक्त हुए।
- दो कार्यकाल पूरा करने के बाद 1971 में सेवानिवृत्त हुए।
4. Kalikinkar Datt लेखन एवं संपादन
- उन्होंने 50 से अधिक पुस्तकों का लेखन और संपादन किया।
- प्रमुख कृतियाँ हैं:
- History of Freedom Movement in Bihar (तीन भाग, 1956–58)
- गांधीजी इन बिहार (1969)
- Biography of Kunwar Singh and Amar Singh
- Rajendra Prasad (1970)
- Reflection on the Mutiny (1966)
- इन रचनाओं से बिहार और दक्षिण भारत के स्वतंत्रता संग्राम के ऐतिहासिक पक्षों पर गहन प्रकाश पड़ा।
5. अन्य सम्मान और गतिविधियाँ
- वे कई शोध संस्थानों से जुड़े रहे।
- D.Litt की उपाधि वर्धमान विश्वविद्यालय से प्राप्त हुई।
6. मृत्यु
- उन्होंने 24 मार्च 1982 को अंतिम सांस ली।
Kalikinkar Datt संक्षेप सारणी
| श्रेणी | विवरण |
|---|---|
| जन्म | 1905, झिकरहाटी, पाकुर ज़िला |
| शिक्षा | MA (1927), PhD (अलीवर्दी शोध) |
| प्रमुख पद | पटना कॉलेज – व्याख्याता (1930), प्राचार्य (1958), उपकुलपति (1965–1971) |
| प्रमुख रचनाएँ | History of Freedom Movement in Bihar, Gandhi ji in Bihar, आदि |
| सम्मान | D.Litt (वर्धमान विश्वविद्यालय) |
| मृत्यु | 24 मार्च 1982 |
One Word FAQ: Kalikinkar Datt
- कलिकिंकर दत्त का जन्म किस वर्ष हुआ था?
→ 1905 - कलिकिंकर दत्त का जन्म किस स्थान पर हुआ था?
→ झिकरहाटी - डॉ. दत्त ने MA किस विश्वविद्यालय से किया था?
→ कलकत्ता - पटना कॉलेज में दत्त को किस पद पर नियुक्त किया गया?
→ व्याख्याता - PhD के लिए उन्होंने किस विषय पर शोध किया?
→ अलीवर्दी - पटना विश्वविद्यालय के उपकुलपति कब बने?
→ 1965 - ‘History of Freedom Movement in Bihar’ कितने भागों में है?
→ तीन - गांधीजी इन बिहार पुस्तक किस वर्ष प्रकाशित हुई?
→ 1969 - कलिकिंकर दत्त को D.Litt की उपाधि किस विश्वविद्यालय से मिली?
→ वर्धमान - कलिकिंकर दत्त की मृत्यु कब हुई?
→ 1982
Long Type FAQs: Kalikinkar Datt
1. डॉ. कलिकिंकर दत्त का संक्षिप्त जीवन परिचय दीजिए।
उत्तर: डॉ. कलिकिंकर दत्त का जन्म 1905 ई. में झिकरहाटी नामक गांव (अब झारखंड के पाकुड़ जिले में) में हुआ था। वे एक महान इतिहासकार थे। उन्होंने कलकत्ता विश्वविद्यालय से 1927 में एम.ए. की डिग्री प्राप्त की। 1930 में पटना कॉलेज में इतिहास के व्याख्याता के रूप में कार्यभार संभाला। उन्होंने अलीवर्दी खान पर शोध कर पीएच.डी. की उपाधि प्राप्त की। उनका सारा जीवन इतिहास के अध्ययन, लेखन और शिक्षण को समर्पित रहा।
2. डॉ. दत्त की शैक्षणिक उपलब्धियों का वर्णन कीजिए।
उत्तर: डॉ. दत्त की शैक्षणिक यात्रा अत्यंत प्रेरणादायक रही। उन्होंने कलकत्ता विश्वविद्यालय से इतिहास में एम.ए. किया और बाद में ‘अलीवर्दी एंड हिज़ टाइम्स’ विषय पर पीएच.डी. की उपाधि प्राप्त की। वे 1930 में पटना कॉलेज में व्याख्याता बने, 1958 में प्राचार्य बने, और 1965 में पटना विश्वविद्यालय के उपकुलपति नियुक्त हुए। वे दो कार्यकाल तक इस पद पर बने रहे। उनके कार्यकाल में शिक्षा व्यवस्था में कई सुधार हुए।
3. डॉ. दत्त ने बिहार के इतिहास लेखन में क्या योगदान दिया?
उत्तर: डॉ. दत्त ने बिहार के आधुनिक इतिहास को विशेष महत्त्व दिया। उन्होंने बिहार के स्वतंत्रता संग्राम, आंदोलन और नेताओं पर शोधपरक लेखन किया। उनकी प्रसिद्ध कृति “History of Freedom Movement in Bihar” तीन खंडों में प्रकाशित हुई, जो बिहार के इतिहास लेखन का एक अमूल्य स्रोत है। उन्होंने “गांधीजी इन बिहार” पुस्तक में गांधीजी की बिहार में गतिविधियों का विश्लेषण प्रस्तुत किया।
4. डॉ. दत्त की प्रमुख कृतियाँ कौन-कौन सी हैं?
उत्तर: डॉ. दत्त ने लगभग 50 से अधिक पुस्तकों का लेखन और संपादन किया। उनकी प्रमुख कृतियाँ हैं –
- History of Freedom Movement in Bihar (3 भाग)
- Gandhi ji in Bihar (1969)
- Reflection on the Mutiny (1966)
- Biography of Kunwar Singh and Amar Singh
- Rajendra Prasad (1970)
इन कृतियों ने आधुनिक इतिहास को जनमानस के बीच पहुंचाया।
5. डॉ. दत्त के प्रशासनिक योगदानों पर प्रकाश डालिए।
उत्तर: डॉ. दत्त न केवल एक इतिहासकार थे, बल्कि एक सफल प्रशासक भी थे। उन्होंने पटना कॉलेज के प्राचार्य के रूप में कार्य किया और बाद में पटना विश्वविद्यालय के उपकुलपति बने। उन्होंने शिक्षकों और विद्यार्थियों के लिए अकादमिक माहौल को बेहतर बनाया। उनके नेतृत्व में शोध और इतिहास लेखन को बढ़ावा मिला। वे अपने कार्य के प्रति पूर्णतः समर्पित थे।
6. डॉ. दत्त को कौन-कौन से सम्मान प्राप्त हुए?
उत्तर: डॉ. दत्त को उनके योगदान के लिए कई सम्मानों से नवाजा गया। उन्हें वर्धमान विश्वविद्यालय से D.Litt की मानद उपाधि प्रदान की गई। इसके अतिरिक्त वे कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय शोध संस्थाओं से भी जुड़े रहे। उनका नाम भारतीय इतिहास लेखन के क्षेत्र में अत्यंत सम्मान से लिया जाता है।
7. डॉ. दत्त के लेखन की विशेषताएँ क्या थीं?
उत्तर: डॉ. दत्त का लेखन गहन शोध पर आधारित था। वे तथ्यों की पुष्टि करने के बाद ही निष्कर्ष प्रस्तुत करते थे। उनकी भाषा सरल और प्रभावशाली थी। उनके ग्रंथों में ऐतिहासिक घटनाओं का विश्लेषण निष्पक्ष और प्रमाणिक रूप में किया गया है। वे आधुनिक इतिहास को क्षेत्रीय परिप्रेक्ष्य में देखने के पक्षधर थे।
8. “History of Freedom Movement in Bihar” पुस्तक का महत्व बताइए।
उत्तर: यह पुस्तक बिहार के स्वतंत्रता संग्राम का एक दस्तावेज है। इसमें 1857 से लेकर स्वतंत्रता प्राप्ति तक की घटनाओं का क्रमबद्ध वर्णन है। यह पुस्तक तीन खंडों में प्रकाशित हुई थी (1956–58)। इसमें बिहार के आंदोलनों, नेताओं, घटनाओं और जन-भागीदारी का विवरण मिलता है। यह पुस्तक इतिहास के विद्यार्थियों और शोधार्थियों के लिए अत्यंत उपयोगी है।
9. डॉ. दत्त के लेखन में गांधीजी का उल्लेख क्यों महत्त्वपूर्ण है?
उत्तर: डॉ. दत्त ने गांधीजी के बिहार आगमन, चंपारण आंदोलन, और उनके प्रभावों का विश्लेषण अपनी पुस्तक “गांधीजी इन बिहार” में किया है। उन्होंने गांधीजी के सिद्धांतों और कार्यों को बिहार के संदर्भ में प्रस्तुत किया। इस पुस्तक से छात्रों को यह समझने में मदद मिलती है कि गांधीजी का आंदोलन स्थानीय स्तर पर कैसे प्रभावशाली बना।
10. डॉ. दत्त की मृत्यु कब और कैसे हुई? उनके योगदान को कैसे याद किया जाता है?
उत्तर: डॉ. दत्त का निधन 24 मार्च 1982 को हुआ। वे एक विद्वान, लेखक, शिक्षक और प्रशासक के रूप में याद किए जाते हैं। उनका योगदान आधुनिक भारत और विशेषकर बिहार के इतिहास लेखन में अमूल्य है। आज भी उनके द्वारा लिखे गए ग्रंथ इतिहास के छात्रों और शिक्षकों के लिए प्रेरणा स्रोत हैं।
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डॉ. कलिकिंकर दत्त जैसे महान इतिहासकारों के योगदान से ही आज हम भारत के आधुनिक इतिहास को गहराई से समझ पाते हैं। उनके लेखन ने बिहार सहित पूरे देश के स्वतंत्रता संग्राम और सामाजिक आंदोलनों को प्रामाणिक रूप से दस्तावेज़ किया। अगर आप भारत के विभाजन और स्वतंत्रता के पश्चात के हालात को समझना चाहते हैं, तो स्वतंत्रता के बाद: विभाजन और भारत का जन्म | Class 8 History Chapter 13 Notes ज़रूर पढ़ें। इसके अलावा भारत में राष्ट्रवाद के विकास को जानने के लिए राष्ट्रीय अध्ययन 1885-1947 | History Class 8 Chapter 12 भी अवश्य देखें।
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