शिल्प एवं उद्योग | Social Science Class 8 Chapter 5 Bihar Board

शिल्प एवं उद्योग: भारत को शिल्प और उद्योगों का केंद्र कहा जाता है। प्राचीन काल से ही भारतीय कारीगर अपनी उत्कृष्ट कला और तकनीकों के लिए प्रसिद्ध रहे हैं। भारतीय समाज में शिल्प और उद्योग न केवल रोजगार का मुख्य साधन थे, बल्कि इससे समाज की सांस्कृतिक और आर्थिक स्थिति भी निर्धारित होती थी।

विभिन्न कालखंडों में भारतीय शिल्प और उद्योगों ने कई उतार-चढ़ाव देखे। वैदिक काल से लेकर आधुनिक काल तक, इन उद्योगों ने देश की अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ बनाया। ब्रिटिश शासनकाल में भारतीय शिल्प को भारी क्षति पहुंची, लेकिन स्वतंत्रता के बाद सरकार ने इनके पुनरुद्धार के लिए कई योजनाएं बनाई।

इस अध्याय में हम प्राचीन काल से लेकर आधुनिक युग तक भारतीय शिल्प एवं उद्योगों के इतिहास, उनके पतन, पुनरुद्धार, और वर्तमान समय में उनकी स्थिति को विस्तार से समझेंगे।

1. सिंधु घाटी सभ्यता (2600-1900 ई.पू.)

सिंधु घाटी सभ्यता भारत की सबसे प्राचीन और उन्नत नगर सभ्यताओं में से एक थी। यहां के लोग कारीगरी और उद्योगों में अत्यधिक निपुण थे।

  • मुख्य उद्योग:
    • मिट्टी के बर्तन (टेराकोटा पॉटरी)
    • तांबे और कांसे के औजार
    • सूती वस्त्र निर्माण
    • मोहरें और आभूषण निर्माण
    • मोती और सीप के आभूषण
  • व्यापार और शिल्प:
    • लोथल (गुजरात) में एक बड़ा बंदरगाह था, जहां से व्यापार किया जाता था।
    • हड़प्पा और मोहनजोदड़ो में विशाल गोदाम मिले हैं, जो व्यापार की उन्नति को दर्शाते हैं।

2. वैदिक काल (1500-600 ई.पू.)

  • इस काल में धातु निर्माण और कुम्हार कला का विकास हुआ।
  • लोग तांबे, लोहे और सोने-चांदी के गहने बनाने लगे।
  • ऊनी और सूती वस्त्र निर्माण उन्नत अवस्था में था।
  • इस समय बुनकरों और बढ़ई को विशेष सम्मान प्राप्त था।

3. मौर्य काल (321-185 ई.पू.)

  • शिल्प और उद्योगों का विस्तार हुआ।
  • अशोक के शासनकाल में विशाल स्तंभों, मूर्तियों और भवनों का निर्माण हुआ।
  • पत्थर तराशने की कला उन्नत अवस्था में थी।
  • लोहा, तांबा और पीतल से बने औजारों का उपयोग बढ़ा।

4. गुप्त काल (319-550 ई.)

  • इस काल को भारतीय शिल्प और उद्योगों का स्वर्ण युग कहा जाता है।
  • भारत में सोने-चांदी के सिक्के बनने लगे।
  • वस्त्र उद्योग (मलमल और सिल्क) चरम पर था।
  • धातु शिल्प में उत्कृष्ट मूर्तियों का निर्माण हुआ।

मध्यकालीन भारत में शिल्प एवं उद्योग

1. दिल्ली सल्तनत (1206-1526 ई.)

  • इस काल में कश्मीरी शाल, कालीन और कागज उद्योग उन्नति पर थे।
  • भारतीय हथकरघा उद्योग ने प्रसिद्धि प्राप्त की।
  • अफगानों और तुर्कों ने नई तकनीकों का समावेश किया।

2. मुगल काल (1526-1857 ई.)

  • भारत में वस्त्र उद्योग, धातुकर्म, और आभूषण निर्माण चरम पर था।
  • मुगल शासकों ने कारीगरों को संरक्षण दिया।
  • भवन निर्माण कला ने नया रूप लिया (ताजमहल, लाल किला, फतेहपुर सीकरी)।
  • आगरा, जयपुर, दिल्ली, वाराणसी और बिहार में शिल्प उद्योगों की उन्नति हुई।

ब्रिटिश शासन में भारतीय शिल्प एवं उद्योग का पतन

1. ब्रिटिश नीतियों का प्रभाव

  • भारतीय शिल्प और उद्योगों को कमजोर करने के लिए अंग्रेजों ने भारी कर लगाए।
  • कच्चे माल का निर्यात किया गया और भारत में ब्रिटिश मशीन निर्मित वस्त्र बेचे गए।
  • भारतीय बुनकरों को मजबूर किया गया कि वे अपनी पारंपरिक कला छोड़ दें।

2. मशीनों का प्रभाव

  • ब्रिटिश मशीनों से बने सस्ते वस्त्र भारतीय बाजारों में आने लगे, जिससे हस्तशिल्प उद्योग प्रभावित हुआ।
  • भारतीय हथकरघा उद्योग पर बुरा असर पड़ा।

3. रेलवे का विस्तार

  • रेलवे के माध्यम से ब्रिटिश माल दूर-दराज तक पहुंचा, जिससे स्थानीय कारीगर बेरोजगार हो गए।

आधुनिक काल में भारतीय शिल्प एवं उद्योग का पुनरुद्धार

1. स्वदेशी आंदोलन (1905)

  • भारतीयों ने विदेशी वस्त्रों का बहिष्कार किया।
  • खादी और हथकरघा उद्योग को बढ़ावा मिला।
  • स्थानीय उद्योगों को पुनर्जीवित करने का प्रयास किया गया।

2. स्वतंत्रता के बाद उद्योगों का विकास

  • पंचवर्षीय योजनाओं के तहत उद्योगों को बढ़ावा दिया गया।
  • भारत में इस्पात, कपड़ा, खनन और इलेक्ट्रॉनिक्स उद्योगों का विकास हुआ।
  • सरकारी योजनाओं से कुटीर और लघु उद्योगों को समर्थन मिला।

वर्तमान समय में भारतीय शिल्प और उद्योग

1. वैश्वीकरण और भारतीय उद्योग

  • भारत ने वैश्विक बाजार में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई है।
  • हस्तशिल्प और कुटीर उद्योगों को अंतरराष्ट्रीय पहचान मिली है।
  • भारतीय वस्त्र उद्योग आज भी दुनिया में अग्रणी है।

2. सरकारी योजनाएं और नीतियां

  • मेक इन इंडिया: भारतीय उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए शुरू की गई पहल।
  • स्टार्टअप इंडिया: नए उद्योगों को प्रोत्साहन देने के लिए सरकार का प्रयास।
  • कौशल विकास योजना: कारीगरों और श्रमिकों के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम।

3. चुनौतियां और समाधान

  • चुनौतियां:
    • प्रौद्योगिकी की कमी
    • वैश्विक प्रतिस्पर्धा
    • वित्तीय समस्याएं
  • समाधान:
    • तकनीकी शिक्षा को बढ़ावा देना
    • वित्तीय सहायता प्रदान करना
    • अनुसंधान और नवाचार को प्रोत्साहित करना

निष्कर्ष

भारत का शिल्प और उद्योग क्षेत्र अत्यंत समृद्ध रहा है। प्राचीन काल से लेकर वर्तमान तक, इसने देश की आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक संरचना को आकार दिया है। ब्रिटिश शासन के दौरान यह क्षेत्र कमजोर हुआ, लेकिन स्वतंत्रता के बाद भारत ने अपने शिल्प और उद्योगों को पुनर्जीवित करने का प्रयास किया।

आज, भारत का उद्योग क्षेत्र वैश्विक स्तर पर महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है, लेकिन इसे और अधिक प्रोत्साहन देने की आवश्यकता है। सही नीतियों और योजनाओं के माध्यम से भारत अपने पारंपरिक और आधुनिक उद्योगों को और अधिक सशक्त बना सकता है।

प्रश्न-उत्तर

प्रश्न: मध्यकालीन भारत में शिल्प और उद्योगों का क्या महत्व था?

उत्तर: मध्यकालीन भारत में शिल्प और उद्योगों का समाज और अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण स्थान था। वस्त्र निर्माण, धातुकर्म, आभूषण निर्माण, और भवन निर्माण कला उन्नत अवस्था में थीं, जो आर्थिक समृद्धि और सांस्कृतिक विकास को दर्शाती हैं।

प्रश्न: ब्रिटिश शासन के दौरान भारतीय शिल्प और उद्योगों पर क्या प्रभाव पड़ा?

उत्तर: ब्रिटिश शासन के दौरान भारतीय शिल्प और उद्योगों को भारी क्षति पहुंची। ब्रिटिश नीतियों और मशीन निर्मित वस्त्रों के आगमन से स्थानीय कारीगर बेरोजगार हुए, जिससे पारंपरिक उद्योगों का पतन हुआ।

प्रश्न: स्वदेशी आंदोलन ने भारतीय उद्योगों को कैसे प्रभावित किया?

उत्तर: स्वदेशी आंदोलन के दौरान भारतीयों ने विदेशी वस्त्रों का बहिष्कार किया, जिससे खादी और हथकरघा उद्योग को बढ़ावा मिला। इसने स्थानीय उद्योगों के पुनरुद्धार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

प्रश्न: स्वतंत्रता के बाद भारत सरकार ने शिल्प और उद्योगों के विकास के लिए कौन-कौन सी योजनाएं बनाई?

उत्तर: स्वतंत्रता के बाद सरकार ने पंचवर्षीय योजनाओं के माध्यम से इस्पात, कपड़ा, खनन, और इलेक्ट्रॉनिक्स उद्योगों का विकास किया। कुटीर और लघु उद्योगों को भी सरकारी समर्थन मिला।

प्रश्न: ‘मेक इन इंडिया’ पहल का उद्देश्य क्या है?

उत्तर: ‘मेक इन इंडिया’ पहल का उद्देश्य भारतीय उत्पादन को बढ़ावा देना है, जिससे देश में विनिर्माण क्षेत्र का विकास हो, रोजगार के अवसर बढ़ें, और भारत वैश्विक विनिर्माण हब के रूप में स्थापित हो सके।

प्रश्न: वैश्वीकरण ने भारतीय शिल्प और उद्योगों को कैसे प्रभावित किया है?

उत्तर: वैश्वीकरण के माध्यम से भारतीय हस्तशिल्प और कुटीर उद्योगों को अंतरराष्ट्रीय पहचान मिली है। भारतीय वस्त्र उद्योग आज भी दुनिया में अग्रणी है, जिससे निर्यात और आर्थिक विकास में वृद्धि हुई है।

प्रश्न: वर्तमान समय में भारतीय शिल्प और उद्योगों के सामने कौन-कौन सी चुनौतियां हैं?

उत्तर: वर्तमान में भारतीय शिल्प और उद्योगों के सामने प्रौद्योगिकी की कमी, वैश्विक प्रतिस्पर्धा, और वित्तीय समस्याएं प्रमुख चुनौतियां हैं। इनसे निपटने के लिए तकनीकी शिक्षा, वित्तीय सहायता, और नवाचार को प्रोत्साहित करना आवश्यक है।

प्रश्न: सरकार द्वारा शिल्पकारों के कौशल विकास के लिए कौन-कौन सी योजनाएं चलाई जा रही हैं?

उत्तर: सरकार ने शिल्पकारों के कौशल विकास के लिए ‘कौशल विकास योजना’ जैसी पहलें शुरू की हैं, जो कारीगरों और श्रमिकों को प्रशिक्षण प्रदान करती हैं, जिससे उनकी उत्पादकता और गुणवत्ता में सुधार होता है।

प्रश्न: भारतीय शिल्प और उद्योगों के संरक्षण के लिए क्या कदम उठाए जा रहे हैं?

उत्तर: भारतीय शिल्प और उद्योगों के संरक्षण के लिए सरकार और गैर-सरकारी संगठन मिलकर काम कर रहे हैं। हस्तशिल्प मेलों, प्रदर्शनियों, और प्रशिक्षण कार्यक्रमों के माध्यम से कारीगरों को प्रोत्साहित किया जा रहा है।

प्रश्न: शिल्प और उद्योगों के विकास में शिक्षा का क्या महत्व है?

उत्तर: शिल्प और उद्योगों के विकास में शिक्षा का महत्वपूर्ण योगदान है। तकनीकी और व्यावसायिक शिक्षा से कारीगरों की कौशल क्षमता बढ़ती है, जिससे उत्पादों की गुणवत्ता और प्रतिस्पर्धात्मकता में सुधार होता है।

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